बाड़मेर यात्रा 15 फरवरी,2017 को एक गड़बड़ी के
साथ शुरू हुई थी। बेंगलुरु से दिल्ली की उड़ान सुबह सवा नौ बजे थी। लेकिन
एयरपोर्ट वाले इलाके में सुबह भारी कोहरा भी था। इस वजह से सुबह की सब
उड़ान लेट चल रही थीं। एयरपोर्ट पर हमें बताया गया कि की हमारी उड़ान देर
से जाएगी और इस वजह से दिल्ली से जोधपुर की उड़ान मिलना संभव नहीं है।
हमने बाड़मेर के साथियों से फोन पर चर्चा की और तय किया कि दिल्ली तक की
यात्रा तो कर ही ली जाए। दिल्ली से जोधपुर की हवाई यात्रा के बदले, वहाँ
से रेल द्वारा सीधे बाड़मेर ही पहुँचा जाए। आनन-फानन में बाड़मेर के एक
साथी ने दिल्ली से बाड़मेर के लिए तत्काल रेल टिकट बुक कराकर भेज दी।
लेकिन गड़बड़ केवल इतनी नहीं थी। उस दिन बेंगलुरु में एयरपोर्ट के पास एयर
शो भी था। नतीजा यह कि सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक न तो कोई हवाई
जहाज उड़ सकता था और न ही उतर सकता था। इस कारण से हमारी दिल्ली की उड़ान
भी रनवे पर दो घंटे खड़ी रही।
बहरहाल दोपहर तक दिल्ली पहुँच गए।
ट्रेन पुरानी दिल्ली स्टेशन से थी। वहाँ तक जल्दी पहुँचने का सबसे सरल
रास्ता मैट्रो रेल का था। उसके बारे में अधिक जानकारी के लिए Nishu Khandelwal को फोन लगाया। पर निराशा हाथ लगी।
शाम जब बाड़मेर जाने वाली मालानी एक्सप्रेस संभवत: गुड़गाँव से गुजर रही
थी, और हम उसमें बैठे थे, तो निशु का फोन आया। वह यह सुनकर बहुत दुखी हुई
कि उसने हमसे मुलाकात का मौका गँवा दिया। उसने कहा वापसी में जरूर मिलना।
पर हमें लौटना तो मुम्बई होकर था। यह सुनकर वह थोड़ी और उदास हो गई।
अपने सूरज के उगने संबंधी हमारे ऊटपटांग और भ्रमित करने वाले फेसबुक
स्टेटस पढ़कर, बाड़मेर के साथियों ने इसी ट्रेन से जयपुर से आ रहे एक
अन्य साथी Mahmood Khan
की डयूटी इस बात का ध्यान रखने के लिए लगाई थी कि हम कहीं ट्रेन के गलत
डिब्बे में न बैठ जाऍं। क्योंकि यह ट्रेन जोधपुर से दो हिस्सों में बँट
जाती है। जयपुर में रात बारह बजे हमें महमूद खान ने ट्रेन के सही हिस्से
में बर्थ पर गहरी नींद में सोता हुआ पाया, तो वे भी बाजू के कम्पार्टमेंट
में जाकर खर्राटे भरने लगे। सुबह होने पर उन्होंने हमें खोजा और यह सब
बताया।
तो बाड़मेर भी आखिर पहुँच ही गए। तीन दिन बाद 19 फरवरी को
वापसी की यात्रा शुरू हुई, लेकिन फिर एक गड़बड़ के साथ। बाड़मेर से जोधपुर
तक की यात्रा रेल से थ्ाी। आगे की यात्रा हवाई जहाज से थी। जोधपुर से
व्हाया मुम्बई होकर। लेकिन जोधपुर एयरपोर्ट पर हमें बताया गया कि हमारी
तो टिकट है ही नहीं। जो टिकट लेकर हम घूम रहे हैं, वह रद्द कर दी गई है।
हुआ यह था कि ट्रेवल एजेंट की कुछ गलतफहमी के कारण दिल्ली-जोधपुर टिकट के
साथ जोधपुर-मुम्बई टिकट भी कैंसिल कर दी गई।
बहरहाल यहाँ-वहाँ फोन
करके अंत में यह तय हुआ कि रात को उसी मालानी एक्सप्रेस को पकड़कर
दिल्ली जाया जाए, जो हमें लेकर आई थी। वहाँ से अगले दिन यानी सोमवार की
रात को बेंगलुरु की फ्लाइट मिलेगी। यानी अब हमारे पास आधा दिन था जोधपुर का
किला देखने के लिए और सेामवार का लगभग आधा दिन दिल्ली में गुजारने के
लिए।
निशु को फोन लगाया और अपनी दुख भरी गाथा सुनाते हुए उसे यह खुश
खबरी दी कि कल हम दिल्ली आ रहे हैं, मुलाकात करना हो तो बताओ। खबर सुनते
ही वह उछल पड़ी होगी, ऐसा फोन पर उसकी आवाज से लगा। थोड़ी देर की झिक-झिक
के बात तय हुआ कि हमारी रेल गुड़गाँव से ही गुजरेगी, तो हम वहीं उतर जाएँ।
निशु एक स्कूल में पढ़ाती है और गुड़गाँव में ही रहती है। निशु ने बताया
कि वह तो सुबह स्कूल चली जाएगी और चार बजे लौटेगी। पर ऐसा कुछ इंतजाम कर
जाएगी कि घर की चाबी हमारे हाथ लग जाए।
हुआ भी ऐसा ही। लगभग
ग्यारह बजे के आसपास हम गुड़गाँव पहुँचे। निशु ने एक शेयर टैक्सी बुक
करवा दी थी। लगभग पैंतालीस मिनट गुड़गाँव की सैर के बाद निशु के घर पहुँचे।
चाबी हमें बताए गए स्थान पर प्राप्त हो गई। हम ताला खोलकर वन बीओटीके
(बेडरूम-ओपन टैरस-किचन) का मुआयना कर चुके थे। पर निशु जी हमें फोन पर समझा
रहीं थीं, कि कहाँ क्या है। हमारे लिए खाने का आर्डर भी दिया जा चुका था।
हमने स्नान-ध्यान किया और फिर भोजन। उसके बाद पास के बाजार का एक चक्कर
लगाया। लगभग तीन बजे एक झपकी लेने का उपक्रम भी किया।
ठीक चार बजे
निशु दरवाजे पर खड़ी थी। हमसे मिलने की खुशी चेहरे से टपकी पड़ रही थी।
अभी उसको आए दस मिनट भी न बीतें होंगे कि निशु के फोन में उनकी किसी सहेली
की आवाज आ रही थी। मैंने बस इतना सुना कि, हाँ तू भी आ जा।
और अगले
दस मिनट बीतते-बीतते एक और महाशया दरवाजे पर खड़ी थीं। निशु ने परिचय
कराया कि ये प्रीति हैं। यह एक दूसरे स्कूल में पढ़ाती हैं। आपके बारे में
मुझसे सुनती रहती हैं, सो बस मिलने चली आई हैं। हमने उनका स्वागत किया।
मुझे छह बजे के लगभग एयरपोर्ट के लिए निकलना था। निशु ने पूछा कि रात के
खाने के लिए क्या बनाया जाए। पहले तो मैंने मना किया, फिर मुझे लगा कि यह
तो उसका रोज का ही काम होगा। मैं न भी खाऊँ, तो वह तो अपने लिए बनाएगी ही।
तो फ्रिज में उपलब्ध सब्जियों पर नजर डालने के बाद अंतत: आलू-प्याज की
सब्जी बनना तय पाया गया। निशु उठकर किचन के काम में लग गई।
निशु
एकलव्य, चकमक आदि के माध्यम से पहले से अपन को जानती थीं। पर दोस्ती
फेसबुक पर ही परवान चढ़ी। जब हम उससे मिले तो उसे जीवन से भरा हुआ पाया।
खुले दिमाग से सोचने-समझने, विचार-बहस करने वाली एक बिंदास युवा के रूप
में। प्रीति से यह पहली मुलाकात ही थी, पर उसमें भी जीवन को देखने-समझने का
एक जिज्ञासु व्यक्तित्व नजर आया। अब उससे भी मुलाकातें होती रहेंगी,
क्योंकि वह दोस्त जो बन गई है।
Preety Devgan फेसबुक पर हजारवीं दोस्त के रूप में भी तुम्हारा स्वागत है।
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(चलते चलते : निशु का मन था कि वह एयरपोर्ट तक छोड़ने आए, पर हमने ही मना कर दिया, क्योंकि बहुत अधिक समय था नहीं। एयरपोर्ट पहुँचते ही हमें बोर्डिंग पास आदि की औपचारिकताओं के लिए तुरंत ही अंदर जाना था। बहरहाल निशु ने रात के खाने लिए छह पराठे और स्वादिष्ट सब्जी देकर विदा किया। हमने उन्हें एयरपोर्ट पर स्वाद लेकर खाया भी।)
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(चलते चलते : निशु का मन था कि वह एयरपोर्ट तक छोड़ने आए, पर हमने ही मना कर दिया, क्योंकि बहुत अधिक समय था नहीं। एयरपोर्ट पहुँचते ही हमें बोर्डिंग पास आदि की औपचारिकताओं के लिए तुरंत ही अंदर जाना था। बहरहाल निशु ने रात के खाने लिए छह पराठे और स्वादिष्ट सब्जी देकर विदा किया। हमने उन्हें एयरपोर्ट पर स्वाद लेकर खाया भी।)
Bahut sundar.
जवाब देंहटाएंGood Morning Quotes padhen padhayen, life ko happy banayen.