गुरुवार, 27 मई 2010

बंगलौर में उत्‍सव


पिछले दिनों छोटा बेटा उत्‍सव भोपाल से बंगलौर आया था, बस यूंही घूमने। यह अलग बात है कि उसे बंगलौर बिलकुल पसंद नहीं आया। वह परेशान इस बात से था कि यहां कि मौसम एक दिन में तीन बार बदलता है, जबकि उसे एक ही तरह के मौसम में तीन-तीन महीने रहने की आदत है। पिछले दिनों ही मैंने एक कैमरा खरीदा है। वर्षों से मन में कहीं इच्‍छा थी, जो अब जाकर पूरी हुई है। इस कैमरे से उत्‍सव ने कुछ मजेदार तस्‍वीरें ली हैं। आप भी देखिए।
मेरा फोटो खींच रहे  हो । रुको मैं अपने दोस्‍त को भी बुलाता हूं।
हम लकड़ी नहीं हड्डी खाने की प्रेक्टिस कर रहे हैं।
मम्‍मी ने कहा है अच्‍छी तरह से चबाना चाहिए।
ओए लड़ क्‍यों रहा है। यह सचमुच की हड्डी नहीं है।
चलो जी प्रेक्टिस खत्‍म। अब हम जा रहे हैं,आप भी जाओ।

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