सोमवार, 8 सितंबर 2014

रायपुर डायरी


।।एक।।
दो साल के बाद रायपुर में था। 3 सितम्‍बर की रात को पहुंचकर 4 की सुबह धमतरी चला गया था। 6 की सुबह होते-होते हेमंत (जैन) भाई मुझे घेर लिया था। अंतत: तय हुआ कि हम रविवार को मिलेंगे। रायपुर यात्रा के मेरे पहले स्‍टेटस को देखकर ही उन्‍होंने मुझे अपना नंबर भेज दिया था। मेरे पास उनका नंबर पहले से था। फिर 6 की शाम जब उनका फोन आया तब मैं मगरलोड में था। उन्‍होंने बताया कि अचानक उनके दफ्तर का कुछ काम निकल आया है इसलिए वे रविवार को थोड़े व्‍यस्‍त रहेंगे, पर मिलेंगे जरूर।

हेमंत भाई से 25 साल पुराना परिचय है, जब वे मध्‍यप्रदेश के अलीराजपुर और शाजापुर में हुआ करते थे। लगभग हर दो-तीन महीने में उनका भोपाल आना होता। अपनी हर यात्रा में वे समय निकालकर एकलव्‍य जरूर आते। अपने मित्रों और उनके बच्‍चों को चकमक की सदस्‍यता दिलवाना उनका प्रिय काम था। किताबें और लकड़ी के खिलौने भी वे बच्‍चों को जन्‍मदिन पर भेंट करने के लिए ले जाया करते थे।

सुबह लगभग दस बजे हेमंत भाई छत्‍तीसगढ़ शिक्षा स्रोत केंद्र के गेस्‍टहाउस में मौजूद थे। हम दोनों लगभग 10-12 साल बाद रूबरू मिल रहे थे। पर फेसबुक पर होती रही मुलाकातों ने यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वास्‍तव में इतना अंतराल आ गया है। हमने पुरानी यादों को ताजा किया। उस समय के विभिन्‍न व्‍यक्तियों को याद किया। लगभग आधा घंटे की चर्चा के बाद तय हुआ कि यह मुलाकात काफी नहीं है। हम शाम को एक बार फिर मिलेंगे। जब मिले तो वे अकेले नहीं थे, साथ थीं उनकी धर्मपत्‍नी छाया जी और दो नवजवान दम्‍पति अंकित-निकिता और वृषा-विवेक ने। बातों बातों में ही उन्‍होंने एक रेस्‍टोरेंट में भोजन का कार्यक्रम बना लिया था।

शुक्रिया Hemant भाई रायपुर में आज की सुबह और शाम को यादगार बनाने के लिए।

 ।।दो ।।
जब धमतरी यात्रा का कार्यक्रम बना, तो मैंने तय किया कि इस बार दो लोगों से जरूर मिलना है Kunwar Ravindra और Rahul Singh जी। मैंने दोनों को इनबॉक्‍स में संदेश भेजा, कि मैं 6 और 7 को रायपुर में रहूंगा, कृपया बताएं कि आप से भेंट कब हो सकती है। रवीन्‍द्र जी का संदेश आया, स्‍वागत है, आइए।

रायपुर पहुंचकर मैं धमतरी चला गया और वहां से 6 की रात को लौटा। धमतरी में नेट कनेक्टिविटी की समस्‍या के कारण राहुल जी का संदेश नहीं देख पाया। उन्‍होंने अपने संदेश में स्‍वागत करते हुए लिखा था संस्‍कृति एवं पुरातत्‍व विभाग 6 से 14 सितम्‍बर तक संवाद एवं पुस्‍तक प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है। मैं भी उसमें शामिल होऊं। राहुल जी भी इसी विभाग में कार्यरत हैं। बहरहाल मैंने 6 की सुबह पहले रवीन्‍द्र जी को फोन किया। उन्‍होंने कहा कि वे 11 बजे तक बता पाएंगे कि मुलाकात कब संभव है। पौने ग्‍यारह बजे उनका फोन आया कि वे राजभवन के पास काफी हाउस पहुंच रहे हैं, मैं भी वहीं आ जाऊं।

भोपाल के एक और पुराने परिचित Rakesh Kumar Malviya से तय हुआ था कि हम उनके दुपहिया वाहन पर भटकेंगे। राकेश भास्‍कर के वेब संस्‍करण के प्रभारी हैं। उन्‍हें फोन लगाया तो बोले अखबार का कुछ काम आ गया है, उन्‍हें आधा घंटा लगेगा। उधर रवीन्‍द्र जी घर से निकल चुके थे। मैंने राकेश से कहा कि वे अपना काम निपटाकर काफी हाउस आ जाएं, मैं निकलता हूं।

रायपुर के भूगोल से मैं ज्‍यादा परिचित नहीं हूं। कुंवर सिंह ने मुझे बताया कि वहां तक पहुंचने के लिए पहले मुझे घड़ी चौक जाना होगा। मैं घड़ी चौक पहुंचा, तब तक रवीन्‍द्र जी काफी हाउस पहुंच चुके थे। थोड़ी देर बार राकेश फोन आ गया, वे काफी हाउस पहुंच चुके थे, मुझे वहां न पाकर,फोन लगाया था। तब तक में बिलबिचयाया सोच रहा था कि क्‍या करूं। मैंने राकेश से अनुरोध किया कि मुझे घड़ी चौक ले लें। अभी फोन बंद किया ही था कि रवीन्‍द्र जी का फोन आ गया। मैंने उन्‍हें माजरा बताया। उन्‍होंने कहा कि वे वहीं आ रहे हैं।


फोटो : राकेश मालवीय
पता चला कि सर्किट हाउस के सभागार में काफी मुख्‍यमंत्री की वेबसाइट का लोकापर्ण का कार्यक्रम था, जिसकी वजह से काफी हाउस उस समय मुलाकात के लिए उपलब्‍ध नहीं था। रवीन्‍द्र जी हमें अपने घर ले गए। रवीन्‍द्र जी और मैं लगभग 25 साल बाद मिल रहे थे। वे जब भोपाल में थे, तो एकलव्‍य आया करते थे। चकमक के लिए चित्र बनाते थे। फेसबुक पर हो रही रोज की नियमित मुलाकातों ने यह अहसास लगभग समाप्‍त कर दिया कि हम इतने लंबे अंतराल के बाद मिल रहे हैं। लगभग एक-डेढ़ घंटे की चर्चा चकमक, भोपाल, भोपाल के पुराने साथी, फेसबुक की बहस, संवाद,वाद-विवाद, धड़े और घड़े, फेसबुक पर रवीन्‍द्र जी के चित्र, रायपुर में साहित्यिक और कला वातावरण की स्थिति, बच्‍चे और कला आदि के इर्द-गिर्द घूमती रही।

रायपुर में बिताए इस रविवार की चढ़ती दोपहर को रवीन्‍द्र जी ने अपने रंगों से भर दिया। और ये रंग उनके चित्रों के रंग की तरह ही अंतस तक पैठ जाने वाले हैं।
शुक्रिया रवीन्‍द्र जी।
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रवीन्‍द्र जी से मुलाकात के बाद राकेश और हम राहुलसिंह जी से मुलाकात की आस में कलावीथिका गए जहां छत्‍तीसगढ़ शासन के संस्‍कृति विभाग और राजकमल प्रकाशन समूह के संयुक्‍त तत्‍वावधान में लेखक-पाठक संवाद एवं पुस्‍तक प्रदर्शनी का आयोजन हो रहा है। पर राहुल जी वहां नहीं मिले। राकेश ने उनका नंबर जुगाड़ा और फोन मिलाया तो पता चला कि वे शहर से बाहर हैं और सोमवार की शाम तक लौटेंगे। फोन के दूसरे छोर पर वे इस बात पर अफसोस जाहिर कर रहे थे, इस बार हमारी मुलाकात नहीं हो सकेगी।
                                                                                                                       0 राजेश उत्‍साही

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