गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

जयपुर की स्‍वादिष्‍ट यात्राएं

राजस्‍थान पत्रिका के निदेशक श्री कपूरचंद कुलिश के हाथों सम्‍मान
पहली बार जयपुर 1994 में गया था। भोपाल से व्‍हाया आगरा। आगरा से साथ थे डॉ.श्रीप्रसाद। बच्‍चों के लिए कविताएं और कहानी लिखने वाले जाने माने साहित्‍यकार। कानपुर की संस्‍था भारतीय बाल कल्‍याण परिषद,जिसके कर्ता -धर्ता डॉ.राष्‍ट्रबंधु हैं, ने बाल साहित्‍य सेवा के लिए कई अन्‍यों के साथ हम दोनों को सम्‍मानित किया था। सम्‍मान समारोह जयपुर में राजस्‍थान पत्रिका ने आयोजित किया। जयपुर में दो दिन का प्रवास था और उस दौरान आयोजकों की तरफ से ही जयपुर भ्रमण का कार्यक्रम था। इसी दौरान एक दिन का भोजन बालहंस के संपादक अनंत कुशवाहा जी के घर था। तब हम सबने घी में डूबी हुई बाटी और दाल का आनंद लिया था। कुशवाहा जी अब नहीं हैं।

आरती शर्मा और मैं रूम टू रीड कार्यशाला,दिल्‍ली में
दूसरी बार जाना हुआ 2009 में। अबकी बार व्‍हाया दिल्‍ली से बस से जयपुर पहुंचा। यह यात्रा अपने नए संस्‍थान के काम के सिलसिले में थी। जयपुर घूमना तो नहीं हुआ, पर एक नई -नई बनी दोस्‍त आरती शर्मा से मिलने उसके घर जाना हुआ। यह दोस्‍त दिल्‍ली में रूमटूरीड द्वारा 2008 में आयोजित एक कहानी लेखन कार्यशाला की एक भागीदार थी। मैं स्रोत व्‍यक्ति था। उसके घर बैठकर उसकी मां के हाथ का बना गरमा-गरम राजस्‍थानी खाना खाया। उसका स्‍वाद अब तक मुंह में बसा है । इस बीच आरती की शादी भी हो गई। उसने बहुत आग्रह से शादी पर बुलाया था, पर मैं जा न सका। जयपुर की हर बार की यात्रा स्‍वाद से कुछ इस तरह जुड़ गई है कि हर बार एक नया स्‍वाद याद में रह जाता है।  

इस यात्रा की एक और उपलब्‍धि थी। वह थी ‘अनौपचारिका’ के सम्‍पादक रमेश थानवी जी से भेंट। रमेश जी को लेखक के तौर पर मैं वर्षों से जानता रहा हूं। बच्‍चों  के लिए लिखी उनकी एक लम्‍बी कहानी ‘घडि़यों की हड़ताल’ मैंने चकमक में प्रकाशित की थी। पिछले कुछ वर्षों में उनसे अनौपचारिका पत्रिका के कारण फिर से संवाद शुरू हुआ है। भोपाल में रहते हुए मैंने अनौपचारिका के लिए मप्र में शिक्षा की गतिविधियों पर आलेख लिखे। मैं और मेरे साथी गौतम पाण्‍डेय उनके कार्यालय भी गए जो कि झालाना डूंगरी संस्‍थागत क्षेत्र में राजस्‍थान प्रौढ़ शिक्षा समिति के भवन में स्थित है। वहां की भोजन शाला में हमने जैविक भोजन भी किया। इस भोजन की खासयित यह है कि इसमें उपयोग की गई सब्जियां तथा अनाज बिना किसी रासायनिक खाद का इस्‍तेमाल किए उगाई गई थीं।

जयपुर के जवाहर कला केन्‍द्र के प्रांगण में श्री रमेश थानवी के साथ
तीसरी यात्रा इस वर्ष यानी नवम्‍बर, 2010 में हुई। काम के सिलसिले में बंगलौर से जयपुर पहुंचा था। इस यात्रा में एक बार फिर रमेश थानवी जी से मुलाकात हुई। पर एक अंतर था। इस बीच वे हार्ट सर्जरी की कठिन परीक्षा से गुजर चुके थे। कहते हैं उनका नया जन्‍म हुआ है। वे सरल इतने हैं कि यह जानकारी मिलते ही मैं जयपुर में हूं, खुद ही कार चलाते हुए मुझसे मिलने चलने आए। और फिर ले गए वहां के जवाहर कला केन्‍द्र में चल रहे पुस्‍तक मेले में। फिर वहां से अनौपचारिका के कार्यालय में भोजन के लिए। उनके साथ उनके एक युवा मित्र भी थे रोहित। यद्यपि वे उन्‍हें ताऊ जी कहकर ही संबोधित कर रहे थे। यहां दिया फोटो रोहित ने ही खींचा है। बातों बातों में उन्‍होंने बताया कि इस बार उन्‍होंने गांधी जयंती को एक नए ढंग से मनाया। गांधी जी को सुखड़ी नाम की मिठाई बहुत पसंद थी। आप भी सोच रहे होंगे यह कौन-सी मिठाई है। इसे बनाने के लिए पहले आटे को भूना जाता है। फिर एक परात या थाली में गुड़ का पानी भरकर उसमें आटे को बिछा दिया जाता है। जब वह सूख जाता है तो सुखड़ी तैयार हो जाती है। सस्‍ती और सुख देने वाली मिठाई। इसीलिए उसका नाम सुखड़ी रखा गया। इस तरह एक बार फिर रमेश जी के साथ बिताए क्षण यादगार बन गए। इस यात्रा में भी जयपुर में बहुत कुछ घूमने का मौका तो नहीं मिला, पर एक मित्र की सलाह पर जयपुर सिटी पैलेस जरूर देख डाला। आरती से भी मिलने का मन था। फोन पर बात हुई। पता चला उसकी कोई परीक्षा है और पेपर देकर वह शाम को जोधपुर जा रही है। जब तक लौटेगी में निकल चुका होऊंगा। 

श्री नीरज गोस्‍वामी
चौथी यात्रा दिसम्‍बर,2010 में हुई और वह भी यादगार ही बन गई। कुछ हुआ यूं कि नीरज गोस्‍वामी जी ने अपने ब्‍लाग ‘किताबों की दुनिया’ में जयपुर एयरपोर्ट पर किताबों की दुकान का जिक्र किया। मैंने टिप्‍पणी में इस बात का जिक्र किया कि मैं जयपुर जा रहा हूं सो मैं भी इस दुकान को देखूंगा।
उसके बाद नीरज जी से मेरा जो संवाद हुआ वह आप भी पढ़ें।
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राजेश भाई, जयपुर के चौड़ा रास्ता बाज़ार में "मलिक एंड कंपनी" नाम की किताबों की दुकान है वहाँ आपको शायरी की किताबें मिल जाएंगी। समय मिले तो जाइएगा। पास ही में उसी दुकान का गोदाम भी है जिसमें ढूँढने पर अच्छी अच्छी किताबें मिल जाती हैं।

और हाँ मालिक एंड कंपनी के पास ही सौन्थली वालों का रास्ता है जिसमें "शंकर नमकीन भण्डार"  है वहाँ से घर के लिए मिक्स नमकीन ले जाना मत भूलिएगा। नमकीन खाएंगे तो हमें याद करेंगे। चौड़े रास्ते पर ही याने मालिक एंड कंपनी के कोई दस -बारह दूकान आगे ईश्वर जी गज़क वाले की दूकान है। जहाँ से गुड की गज़क और तिल पपड़ी ले जाना मत भूलें...गुड की गज़क ज़बान पर रखते ही घुल जाती है...शाम होते होते तो दुकान से गज़क गायब ही हो जाती है...ये दोनों दुकानें जयपुर की सबसे प्रसिद्द दुकानें हैं जो अपनी नमकीन और गज़क के लिए पूरे भारत में प्रसिद्द हैं। अब आप जयपुर आ कर ये नमकीन और गज़क खरीद कर घर नहीं ले गए तो समझिए आपका जयपुर आना व्यर्थ है। शायरी की किताबें न भी मिलें तो गम नहीं लेकिन ये दो वस्तुएं तो आपको खरीदनी ही चाहिए।

संदेह की अवस्था में मुझे बेझिझक फोन करें...मोबाइल न. मालूम है ना?
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शुक्रिया नीरज जी इस जानकारी के लिए। इस बार तो शायद मौका नहीं मिले । पर अगली बार जब भी जाना होगा। आपकी बताई जगहों पर जरूर जाऊंगा।
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कमाल करते हैं आप राजेश जी,सर्दियों में ही तो इन सब चीजों का मज़ा है। आप कहां ठहरेंगे बताएं। मैं ये सब सामान भिजवा दूंगा। चिंता मत करें,खाली हाथ थोड़े ही लौटने देंगे। जयपुर अपना शहर है।
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शुक्रिया नीरज जी इस आत्‍मीयता के लिए। संभव हुआ तो जरूर ही आपको तकलीफ दूंगा। मैं मालवीय नगर में गौरव टॉवर के पास अपने स्‍टेट ऑफिस में बैठक के लिए जा रहा हूं।
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राजेश जी, अपने आफिस का पूरा पता, आपके मिलने का समय, तारीख़ और मोबाईल न. दें। मेरा एक परिचित आपको निश्चित समय पर ये सामान दे जायेगा, किताबें खरीद कर देना उसके बस में नहीं है लेकिन खाने-पीने का सामान खरीदना उसका शौक है......आप इसके लिए शुक्रिया न कहें...ये तो जयपुर पुनः आने का प्रलोभन दे रहा हूँ आपको...मैं जयपुर में नहीं हूँ वर्ना खुद ये सामग्री ले कर आता...इसे औपचारिकता न समझें ये बड़े भाई होने के नाते मैं अपने अधिकार का प्रयोग कर रहा हूँ... । जवाब का इंतज़ार करूँगा...। 
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शुक्रिया नीरज भाई।  मैं आपके अधिकार का सम्‍मान करते हुए अपने कार्यालय का पता यहां दे रहा हूं...। मेरा मोबाइल नम्‍बर है ..।
जयपुर प्रवास  20 दिसम्‍बर दोपहर 12 बजे से 21 दिसम्‍बर की शाम तक कार्यालय में रहूंगा।
अब छोटे भाई के अधिकार का उपयोग करते हुए यह निवेदन कर रहा हूं कि जब आप जयपुर में होंगे तब आपके साथ बैठकर इस सामग्री का स्‍वाद लूंगा। अत: अभी आप अपने परिचित को कष्‍ट न दें।
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राजेश भाई ,आप की औपचारिकता हमें पसंद नहीं आई...हम तो अपने साथ आपको उस सामग्री का आनंद भी दिलवाएंगे जिसको यात्रा में साथ लेजाना आपके लिए थोडा मुश्किल है जैसे जयपुर का मिश्री मावा, रबड़ी, मावे से भरे गुलाब जामुन और केसर युक्त जलेबी..आदि जब हम मिलेंगे तो इतनी चीजें अपने साथ बिठा कर खिलाएंगे सिर्फ थोड़ी-सी चीजें ही तो आपको साथ ले जाने को कह रहे हैं और आप हैं के हमें मना कर रहे हैं...ये अनुचित है...निवेदन है के आप हमारे अनुरोध को स्वीकार करें और ये तुच्छ भेंट हमारी तरफ से अपने परिवार जन तक पहुंचा दें...वो लोग खायेंगे तो हमें अति प्रसन्नता होगी...आपको एतराज़ है तो आप मत खाएं। 

मैंने अपने परिचित को आपका पता और मोबाईल न. दे दिया है...उम्मीद है आप उसे निराश नहीं करेंगे...।

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नीरज भाई आप तो नाराज हो गए। मैं मना इसलिए कर रहा था क्‍योंकि जयपुर मैं सीधे ही बंगलौर जा रहा हूं। परिवार तो यहां भोपाल और होशंगाबाद में ही रह जाएगा। बहरहाल आपकी भेंट सिर माथे पर रहेगी और मैं उसका आनंद वहां अपने मित्रों के साथ उठाऊंगा।
अब तो मुझे जयपुर जाने का इंतजार रहेगा। कृपया अपने मित्र का नंबर मुझे भी दे दें। ताकि जब वे कॉल करेंगे तो मैं तुरंत ही उन्‍हें पहचान लूं।
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राजेश जी, ये हुई न कोई बात...मोगाम्बो खुश हुआ...आप भोपाल का पता दें तो मैं आपके नाम से वहाँ कोरियर करवा दूंगा, मेरे हाथ ईश्वर की कृपा से कानून की तरह लंबे हैं ।

और हाँ मैं नाराज़ नहीं हुआ था सिर्फ आपको धमकाने के लिए नाराज़गी की भाषा का प्रयोग किया था....अक्सर सीधी ऊँगली से घी जो नहीं निकलता भाई...। 

मेरे परिचित का नाम है : हनुमान सहाय पुरोहित और उसका मोबाइल न. है। वो आपसे 21 दिसंबर को संपर्क करेंगे।
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नीरज भाई, चलिए अब मैं आपको भोपाल का पता भी दे ही देता हूं...।

आपके मित्र हैं हनुमान जी,तो आप निश्वित ही राम जी से कम नहीं हैं और मैं अपने को लक्ष्‍मण मान लेता हूं। तभी तो वे संजीवनी मिठाई लेकर मुझ तक आएंगे।
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भाई राजेश, अब ये राम हनुमान और लक्ष्मण वाला मामला जरा हायर लेवल का है...हम तो भाई साधारण इंसान हैं...साधारण से काम करते हैं...खुश रहते हैं और दूसरों को जहाँ तक संभव हो, खुश रखते हैं, अभी तो पुरोहित जी जो गज़क और नमकीन लायेंगे उसे आप चखें पसंद आने पर हमें बताएं तो हम भोपाल भी भिजवा देंगे...।

अरेरा कालोनी भोपाल में मेरा छोटा भाई कभी रहा करता था...हिंदुस्तान इलेक्ट्रो ग्रेफाईट, मंडी दीप , में काम किया करता था ये कोई बीस साल पुरानी बात है अब वो अहमदाबाद में है...तब हम अरेरा कालोनी भोपाल उसके घर खूब गए हैं...मुझे याद है घर के पास एक पहाड़ी पर छोटा सा मंदिर हुआ करता था जहाँ से नीचे भोपाल इटारसी वाली रेलवे लाइन पर चलती गाडियां देख बच्चे बहुत खुश हुआ करते थे...।

आपको जयपुर में किसी भी सहायता की आवश्‍यकता हो तो निसंकोच हनुमान पुरोहित को बताएं...।
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तो जब मैं 21 दिसम्‍बर को जब जयपुर पहुंचा तो हनुमानप्रसाद जी का फोन आया कि आप कहां हैं बताइए मैं आ रहा हूं। मैंने उन्‍हें पता समझाया। दोपहर में हनुमानप्रसाद जी तो नहीं उनके एक और सहयोगी भट्टाचार्य जी नीरज की ओर से दो तरह की गजक के दो डिब्‍बे और नमकीन लेकर हाजिर थे। मैं उनकी इस मेहमाननवाजी से अभिभूत था।
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नीरज जी ने शुक्रिया कहने के लिए मना किया था। फिर भी फोन करके मैंने यह गुस्‍ताखी की। उनके और मेरे बीच हुए इस मीठे-नमकीन संवाद को आप सबके सामने प्रस्‍तुत करके एक बार फिर गुस्‍ताखी कर रहा हूं। उम्‍मीद है कि जाते हुए साल में नीरज भाई नाराज नहीं होंगे। उनकी भेजी गजक का स्‍वाद अब तक मुंह में घुल रहा है और नमकीन के तो क्‍या कहने। 
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आप सबको नया साल मुबारक हो। वह आपकी जिंदगी में गजक की मिठास और थोड़ा सा नमक भी लाए।                                             
             0 राजेश उत्‍साही

10 टिप्‍पणियां:

  1. जयपुर मैं भी गया कई बार लेकिन नीरज जी जैसे मेरे बड़े भाई नहीं हैं सो गज़क नमकीन आदि का आनंद नहीं ले पाया .. अबकी बार जाऊंगा तो जरुर लूँगा.. हाँ.. जयपुर सिटी प्लेस जरुर घूमा हूँ... राजेश भाई.. इस एक पोस्ट में कई सारी यात्राओं का संगम है... अच्छा लगा पढ़ कर...

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  2. चलिये आप ने जयपुर में घूमने और खाने के लिए एक और जगह का नाम पता बता दिया अभी तक तो नहीं गई हु जल्द ही जाने की सोच रही हु | आप को नए साल की शुभकामनाये |

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  3. राजेश भाई..आपने मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार कर मुझे अनुग्रहित किया है...आप का तहे दिल से शुक्रिया...आपने नमकीन और गज़क स्वाद लिया उसकी प्रशंशा की लेकिन असली प्रशंशा तो उन्हें बनाने वालों की करनी चाहिए...मैं तो जयपुर की एक आध स्वादिष्ट खाद्य वस्तु को आप तक पहुंचाने का साधन मात्र बना हूँ...इसे दुबारा जयपुर आने का निमंत्रण मान लें.

    मेरी सभी ब्लोगर बंधुओं से प्रार्थना है के वो जब भी जयपुर आयें मुझे सूचित करें उन तक गज़क और नमकीन भिजवाना मेरी जिम्मेवारी होगी.(गर्मियों में गज़क की सुविधा नहीं मिलेगी) आप लोगों का स्नेह बदले में मिले बस जीवन में और क्या चाहिए?

    अरुण जी आप मुझे बताएं कब जयपुर आ रहे हैं...ये कैसे आपने मान लिया के मैं आप का बड़ा भाई नहीं?

    नीरज

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  4. namskaar !
    HUME BHI JAIPUR BHARMAN KARWAYA JO BHAUT SSAMAY SE JAANA NAHI HUA THA , ACHCHA LAGA .
    SAADAR

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  5. नीरज जी ने संपत की नमकीन (बाबा हरिश्चंद्र मार्ग )के बारे में नहीं बताया ...?
    सुखडी मेरे लिए नयी मिठाई है...

    वाकई स्वादिष्ट रही हैं आपकी यात्राएँ !

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  6. आपकी सहजता का ही नतीजा है कि आपकी यात्रा ताजगी भरी होकर यादगार बनकर एक अटूट दस्तावेज बन जाती हैं...
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई

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  7. बहुत-बहुत धन्यवाद...
    जयपुर याद दिलाने के लिए और इस वार्ता में पाठक के रूप में शामिल करने केलिए...
    सच कहूँ तो जल भुन के राख हो गया मन...
    तीन बार जाने कि कोशिश की...
    उदैपुर, चित्तोर हो आए इसी चक्कर में...
    एक बार मेरा ऑफिस, एक बार पापा का
    न एक बार मेरी तबियत... जितना वह जाने का मन है उती ही मुसीबतें भी हैं...
    देखते हैं कब तक में मौका मिलता है...

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  8. कहते हैं स्वाद बांटने से नहीं बंटता यह तो अनुभव करने की चीज है लेकिन आपकी यात्राओं के स्वाद का चटखारा तो हमने भी लिया।
    आनंद आ गया।

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