शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

आसमान में स्‍वर लहरी


एक बार‍ फिर जयपुर की यात्रा करनी थी। 31 जनवरी,2011 को उड़ान दिन में तीन बजे की थी। बंगलौर में एयरपोर्ट जाने के लिए घर से तीन घंटे पहले निकलना पड़ता है। ग्‍यारह बजे कार्यालय से निकला तो डेढ़ बजे के आसपास एयरपोर्ट पहुंचा।

सोचा खिड़की वाली सीट लूंगा और बाहर दिख रहे दृश्‍यों को कैमरे में कैद करुंगा। बोर्डिंग पास लेते समय निवेदन किया तो खिड़की वाली सीट मिल भी गई- 2 एफ। जांच आदि की औपचारिकताएं पूरी करके इंतजार कक्ष में पहुंच गया। देखा एक गेट के सामने भारी भीड़ जमा है और लोग जोर-जोर से बात कर रहे हैं। पता चला कि जो उड़ान साढ़े ग्‍यारह बजे मुम्‍बई जाने वाली थी वह ढाई बजे तक भी नहीं गई है। अभी भी एक घंटा और इंतजार करने के लिए कहा जा रहा है। सो सब परेशान हैं। बहस जारी है। एयरलाइंस वाले भी बारी-बारी से आगे आकर यात्रियों की गालियां सुन रहे हैं, वे और कर भी क्‍या सकते हैं। क्‍योंकि वह हवाई जहाज आया ही नहीं है जिसे जाना था।

मेरी उड़ान भी मुम्‍बई होकर ही थी। बहरहाल यह उड़ान समय पर थी। हवाई जहाज में पहुंचे तो पता चला कि खिड़की वाली सीट एक उम्रदराज महोदया ने पहले ही हथिया ली है। हवाई सुंदरी को इस बारे में बताया तो उसने हमसे ही अनुरोध किया कि कृपया आप उनके स्‍थान पर बैठ जाएं। अब दिल तो बच्‍चा है,पर शक्‍ल से तो ... ,सो चुपचाप बैठ गए। वरना जिद करते कि नहीं हमें तो वहीं बैठना है और फिर फोटो खींचना है।

धीरे धीरे समझ आया कि महोदया अकेली नहीं हैं, बल्कि उनके साथ दस-बारह और सहेलियां हैं। वे सब यहां-वहां बैठी हैं। उनमें से पांच बिलकुल बाएं तरफ की पहली दो पंक्तियों में विराजमान थी। खैर हवाई जहाज ने उड़ान भरी।

कुछ समय बाद आगे की पंक्ति से किसी के आलाप भरने का स्‍वर सुनाई दिया। दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि एक महाशय धोती-कुर्ता और बंडी पहने आंखों पर काला चश्‍मा चढ़ाए वहां बैठे हैं। उनके आलाप से लगा कि जरूर कोई संगीत प्रेमी होंगे। वे बीच बीच में रहरहकर आलाप भरते रहते। आंख बंद करके उन्‍हें सुनने का प्रयत्‍न जारी रहता।

मुम्‍बई आया तो वे उठ खड़े हुए । बाएं तरफ बैठी महिलाएं भी उठ खड़ी हुईं। सबको मुम्‍बई में उतरना था। उनमें से एक ने आगे बढ़कर पूछ लिया,’ सर आपका नाम।‘
आलाप ने उनका ध्‍यान भी खींचा था।

’पंडित जसराज।‘
‘मैं भी सोच रही थी,कि आपकी शक्‍ल पहचानी-पहचानी लगती है।‘ महोदया ने अपनी झेंप मिटाई।
‘आप कहां रहती हैं।‘ पंडित जी ने यह पूछकर उन्‍हें और पानी-पानी हो जाने का अवसर दे‍ दिया।  

खैर पानी-पानी तो हम सब थे। विश्‍वास नहीं हो रहा था कि पिछले दो घंटे से वे हमारे साथ बैठे आलाप भर रहे थे। हम लोग अपने आसपास से ही कितने अनजान रहते हैं। मुझे पहली बार मेरी सीट हथियाने वाली महोदया पर गुस्‍सा आया। क्‍योंकि मैंने अपना कैमरा बैग से निकाला ही नहीं था। अगर कैमरा होता तो इस अवसर पर मैं उनका एक फोटो तो ले ही सकता था। कैमरा ऊपर अलमारी में रखे बैग में था। और इस क्षण पर उसे निकालना संभव नहीं था।

देखते-देखते वे आंखों से ओझल हो गए, पर हां उनकी स्‍वरी लहरी कानों में देर तक गूंजती रही।
                                                           0 राजेश उत्‍साही 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, आपने तो अनजाने में ही पं जसराज के आलाप का रस ले लिया।

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  2. सम्मानीय राजेश जी ! आपका ये यात्रा वृत्तांत पढ़कर ऐसा लगा जैसे हम ही सफ़र कर रहे थे आपके साथ. हमे भी उतना ही अफसोस हो रहा है कि इतना अनमोल वाक़या तस्वीरों में कैद न हो सका. पर आपके साथ इस यादगार सफ़र का आनंद आया. अब जब भी जयपुर आने का प्रोग्राम हो तो अवश्य अवगत करवाईयेगा, ताकि आपसे मुलाक़ात के सौभाग्यशाली पलों को हम कैद कर सकें. आभार !!

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  3. वाह अच्छा लगा पढ़ कर. लेकिन पंडित जी को आज भी लोग नहीं पहचानते... लोगों को दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है

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  4. चलिये कोई बात नहीं, स्वर लहरी सुन सके यही क्या कम है |

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  5. बहुत सारे बड़े कलाकार ऐसे है जिनको आम आदमी चेहरे से ठीक से नहीं पहचानता, हा आवाज का जादू ही था की मोहतरमा ने नाम पूछने की जरुरत महसूस की |

    हा कभी कभी वाकई लगता है की बड़े होने का नुकसान हो गया काश बच्चे होते तो जिद्दा कर अपने मन की कर लेते |

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  6. पंडित जसराज और आपके साथ...आपकी किस्मत पर रश्क हो रहा है...देश का दुर्भाग्य है के हमें उनसे पूछना पड़ रहा है के आप कौन हैं...?

    नीरज

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  7. उत्साही जी आपकी इस यात्रा से तो ईर्ष्या होरही है सचमुच । आकाश में पं. जी के साथ उनका गायन सुनते हुए यात्रा करना । क्या अद्भुत अनुभव रहा होगा ।

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  8. बहुत ही रोचक रहा आपका यह यात्रा संस्‍मरण ...सच कहा आपने कभी-कभी हम लोग अपने आसपास से ही कितने अनजान रहते हैं।

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