बुधवार, 2 नवंबर 2011

गुलज़ार जी के साथ मुम्‍बई हवाई अड्डे पर



यह फोटो भारत भवन, भोपाल में 22 अक्‍टूबर,2011 की सुबह का है। इस क्षण को कैमरे में कैद किया कार्तिक शर्मा ने।  
बंगलौर से मुम्‍बई की उड़ान दोपहर 3 बजे आ गई थी। मैं इसमें ही सवार होकर आया था। भोपाल की उड़ान शाम लगभग 6 बजे थी। मेरे पास तीन घंटे थे। एक घंटा तो मैंने यूं ही यहां-वहां हवाई अड्डे पर टहलकर गुजारा और उसके बाद एक घंटा लैपटॉप पर उलझा रहा। उससे ज्‍यादा उलझने का समय नहीं था,क्‍योंकि लैपटॉप की बैटरी साथ नहीं देने वाली थी। मुम्‍बई के अन्‍तर्राष्‍ट्रीय छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे पर मुझे ऐसी कोई जगह नजर नहीं आई जहां बैटरी को चार्ज किया जा सके। सो मैंने भी उसे बंद करना ही बेहतर समझा।


मुझे पता था कि गुलज़ार जी भी इस उड़ान से भोपाल जा रहे हैं। और उसी कार्यक्रम के लिए जा रहे हैं, जिसके लिए मैं जा रहा हूं। भोपाल में 22 अक्‍टूबर की शाम भारत भवन में चकमक बालविज्ञान पत्रिका के 300 वें अंक का विमोचन कार्यक्रम था। विमोचन गुलज़ार जी को ही करना था। मेरा जाना अचानक ही तय हुआ था इसलिए मुम्‍बई होते हुए उड़कर जाने की नौबत आई थी। पर यह नौबत एक सुखद संयोग में बदलने जा रही थी, यह सोचकर मैं रोमांचित था। मैं हवाई अड्डे के लाउंज में ऐसी जगह जाकर बैठ गया जो सुरक्षा जांच के लिए बने काउंटर के बिलकुल सामने थी। गुलज़ार जी आएंगे तो वहीं से, सो तुरंत नजर पड़ जाएगी। पांच बजने वाले थे। मैं नया ज्ञानोदय का बालसाहित्‍य विशेषांक पलटने लगा। बीच-बीच में नजर उठाकर देख लेता। फोटो में गुलज़ा‍र जी को अक्‍सर मैंने सफेद कुर्ते-पायजामे में ही देखा था। सो मेरे दिमाग में वही तस्‍वीर बनी थी कि वे आज भी अपनी उसी पोशाक में दिखाई देंगे।

वे सुरक्षा जांच काउंटर पारकर लाउंज में आ चुके थे- एक छोटी-सी स्‍ट्राली खींचते हुए अपने उसी झक्‍क सफेद 'लिबास' में। मैं तुंरत उठ खड़ा हुआ। वे ठिठके और सामने स्‍क्रीन पर उड़ानों का टाइमटेबिल देखने लगे। तभी एक सज्‍जन सामने आए, उन्‍हें एक कागज थमाया और चलते बने। मैं गुलज़ार जी के सामने जा खड़ा हुआ। नमस्‍कार कर अपना 'परिचय' दिया। बताया मैं भी उसी कार्यक्रम के लिए जा रहा हूं। वे मुस्‍कराए और बोले अच्‍छा और अपनी स्‍ट्राली खींचते हुए आगे बढ़ गए। मैं वहीं ठिठककर रह गया। मैंने सोचा चलो 'किनारा' कर लो। बाकी  परिचय भोपाल में। आधा मिनट भी नहीं बीता होगा कि वे मुड़े और मुझे ठिठका देखकर बोले आइए। मैं लपककर उनके साथ हो लिया। मुम्‍बई का यह लाउंज जहां से भोपाल की उड़ान को जाना था गेट नम्‍बर 13 से 18 के बीच था। बहुत ही छोटा-सा। कुर्सियों की कतारों के बीच से तेजी से निकलते हुए वे कॉफी की एक छोटी-सी दुकान के आगे जा खड़े हुए। पलटकर मुखातिब हुए और बोले क्‍या पिएंगे। मैंने सकुचाते हुए कहा, कॉफी। उन्‍होंने दो कॉफी का ऑर्डर दिया और फिर मुझ से बतियाने लगे।

लाउंज के लोगों के लिए इतना वक्‍त पर्याप्‍त था गुलज़ार जी को पहचानने के लिए। कुछ दूर से ही उन्‍हें देखकर प्रसन्‍न हो रहे थे और एक-दूसरे को बता रहे थे कि गुलज़ार हैं। एक नवयुवती से रहा नहीं गया वह अंग्रेजी चबाती हुई उनके बिलकुल करीब आ गई और अपने मोबाइल सेट पर मुझसे एक फोटो लेने का आग्रह करने लगी। गुलज़ार जी ने कहा वे मेरे साथ हैं फोटो कोई और ले लेगा। पास की कुर्सी पर बैठी एक अन्‍य युवती ने उसकी मुश्किल आसान कर दी। उसने अपने पति से कहा आप यह फोटो ले लीजिए।

कॉफी तैयार हो गई थी। अब तक दुकानदार भी उन्‍हें पहचान चुका था। उसने अनुरोध किया कि वे बिल पर ही अपने आटोग्राफ दे दें। वे मुस्‍कराए और बिल पर आटोग्राफ देकर उसे वापस कर दिया। इस बीच दो-तीन और लोग उनसे अपने साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह करने लगे। गुलज़ार जी ने किसी को मना नहीं किया। बहुत सहजता से सबका अनुरोध स्‍वीकार किया। कैमरा मेरे पास भी था। सोचा किसी से अनुरोध करूं कि एक फोटो हमारा भी हो जाए। फिर सोचा अभी तो सफर शुरू ही हुआ है। फिर अगले दो दिन तो उनके साथ ही रहना है, तो इतनी जल्‍दी क्‍या है। कुर्सियों पर बैठकर हमने कॉफी पी। मैंने चकमक से अपने रिश्‍ते के बारे में उन्‍हें बताया। बताया कि मैं बंगलौर से आ रहा हूं और मुझे जानकारी थी कि आप यहां मिलेंगे ही।  

कॉफी खत्‍म करते हुए उन्‍होंने अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई और कहा अभी समय है चलिए 'किताब' की दुकान में चलते हैं। लाउंज के एक कोने में यह दुकान थी। लगभग दस मिनट हम दोनों उसमें भटकते रहे। कुछ नया हाथ नहीं लगा। हां वहां दो और लोगों को उनके आटोग्राफ जरूर मिल गए। गुलज़ार जी कहने लगे जब भी मैं इधर आता हूं एक चक्‍कर जरूर लगा लेता हूं।
(..गपशप गुलज़ार जी से आकाश में ....अगली किस्‍त में..)
                                  0 राजेश उत्‍साही 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा ही हर्षमिश्रित आश्चर्य होता है इस प्रकार देख कर।

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  2. जीवन में ऐसे सुखद पल भी आते रहते हैं .. बधाई आपको !!

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  3. ये तो बहुत सुखद अनुभव रहा होगा अब तो अगले भाग का इंतज़ार है।

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  4. पढ़ा, मगर आपने जल्दी ही हाथ खींच लिया! अगली किश्त में देखते हैं। आप वाकई खुशनसीब हैं!!

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  5. क्या कहूँ राजेश जी ...आपकी किस्मत पर रश्क ही कर सकता हूँ

    नीरज

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  6. बढ़िया यात्रा रही यह ....आप भुला नहीं पायेंगे !
    शुभकामनायें आपको !

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  7. एक स्वप्निल अनुभव.. मेरे लिए इसे पढ़ना!!

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  8. सुखद अनुभव के पलों को बांटने की अगली किश्त की प्रतीक्षा है।

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  9. जीवन के बहुमूल्य पल होंगे वे... संस्मरण अच्छा जा रहा है...

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  10. sach jab koi hasti saadgi se sahajtapurvak mulakat karta hai to wah h hamesha yaadgar ban jaati hai..
    Guljar ji se aapka saadgi se milan aur baatcheet ka yah ansh bahut achha laga....
    sadar!

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  11. GULZAR JI SE MILANA SAB KE LIYE HI SOOKHAD HAI.UDAY TAMHANE.

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  12. RAJESH UTASAHIJI. HAPPY BIRTHDAY. UDAY TAMHANEY.

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  13. RAJESH UTASAHIJI. HAPPY BIRTHDAY. UDAY TAMHANEY.

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  14. 13 NOVEMBER HAJARO SAAL AAP JOSH-KHAROSH SE AAP MANAYE. UDAY TAMHANEY.

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  15. महान गीतकार गुलजार जी के साथ बिताए यादगार सुंदर पल
    की यादे ...अच्छी लगी बधाई ...
    मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है...

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  16. बधाई हो राजेश जी। अगली किस्त का भी इंतज़ार रहेगा।

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  17. बधाई...अच्छी मुलाक़ात रही ये तो
    गुलज़ार जी के साथ तस्वीर अच्छी लग रही है...
    इंतज़ार है,अगली किस्त का...

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