शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

अलविदा 2011

2011 में कुछ यात्राएं और मुलाकातें ऐसी भी हुईं जिनके बारे में लिखने की योजना बनी तो लेकिन पूरी नहीं हुई। उनमें से कुछ के बारे में संक्षिप्‍त में।
 
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जुलाई में कुछ संयोग हुआ कि चार अन्‍य सहकर्मियों के साथ पांडिचेरी यानी पुदुचेरी जाने कार्यक्रम अचानक ही बन गया। केन्‍द्र शासित पुदुचेरी जैसे दो हिस्‍सों में बंटा है। आधा शहर तमिलनाडु में आता है और लगभग आधा केन्‍द्र शासित है। पुदुचेरी बंगाल की खाड़ी के किनारे है। यह अरविन्‍दो आश्रम और श्री मां और उनके आदर्शों पर बने ओरोविल के लिए जाना जाता है। हम समुद्र में नहाए, मस्‍ती की,बीच पर टहले। मंदिर और चर्च में गए। ओरोविल भी गए। पर वहां का मातृमंदिर यानी सभागृह दूर से ही देख पाए। उसे अन्‍दर से देखने के लिए एक दिन पहले बुकिंग करवानी होती है। 
गए तो हम रेल से थे, लेकिन लौटते समय सड़क मार्ग से टैक्‍सी से आए। बंगलौर से कोई दो सौ किलोमीटर पहले जिंजी का किला देखने का अवसर अनायास ही मिल गया। हालांकि उसे ऊपर जाकर देखने की हसरत पूरी नहीं हो पाई। क्‍यों‍कि जब हम उसके करीब पहुंचे तब तक शाम के चार बज चुके थे। रास्‍ते में तमिलनाडु का प्रसिद्ध मंदिर अन्‍नामलाई भी देखने को मिल गया। इस फोटो में बाएं से दाएं संजय तिवारी,सैयद मासूम,यशवेन्‍द्र रावत और मैं यानी राजेश उत्‍साही। सैय्यद मासूम का 31 दिसम्‍बर को जन्‍मदिन है। सैय्यद मियां जन्‍मदिन मुबारक हो।
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सितम्‍बर में सिरोही,राजस्‍थान में एक कार्यशाला के लिए गया था। लौटते हुए कुछ घंटों के लिए माउंट आबू में था। राजस्‍थान की अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी पर। सुबह के सात बज रहे थे। ठंड का मौसम नहीं था लेकिन वहां बहुत ठंड थी। पिछले कुछ दिनों में सिरोही की तरफ दो-तीन बार जाना हुआ है। बंगलौर में एक मित्र ने कहा था सिरोही तक जाते हो और माउंट आबू नहीं। सो इस चोटी पर पहुंचते ही मैंने सबसे पहले उसे फोन किया।
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छोटे बेटे उत्‍सव ने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया है। उत्‍सव एक प्राइवेट होस्‍टल में रहते हुए बीमार हो गया था। उसके बाद हमने निर्णय किया कि वह शहर में कहीं घर लेकर रहे। इसी सिलसिले में तीन-चार बार वहां की यात्रा हुई। घर ढूंढने की ऐसी ही एक कयावद के बीच श्रीमती जी यानी नीमा साथ थीं। उन्‍होंने लगे हाथ उत्‍सव के कॉलेज का मुआयना भी कर लिया। अतंत: जबलपुर के विजयनगर में किराए का घर मिल गया है। अब उत्‍सव और नीमा वहीं रह रहे हैं। एक जनवरी को नीमा का जन्‍मदिन भी है। जन्‍मदिन मुबारक हो। 
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दिल्‍ली से हाल ही में बंगलौर कूच करके आए मित्र भूपेन्‍द्र यादव ने नवम्‍बर के एक शनिवार की  सुबह खाने का निमंत्रण देकर हमारी भूखी आत्‍मा का दिल बाग बाग कर दिया। भूपेन्‍द्र यहां अज़ीमप्रेमजी विश्‍वविद्यालय में प्राध्‍यापक हैं। फोटो में उनके साथ उनकी पत्‍नी सुश्री वंदना महाजन हैं, जो स्‍वयं एक स्‍वतंत्र शिक्षाविद् हैं। वे कई वर्षों तक दिल्‍ली की अल्‍लारिपु संस्‍था के साथ काम करती रहीं हैं। तीसरे महाशय रमणीक मोहन हैं। रमणीक जी ने हाल ही में रोहतक के एक महाविद्यालय से अंग्रेजी के प्राध्‍यापक पद से सेवानिवृति ली है। वे भी अज़ीमप्रेमजी विश्‍वविद्यालय से संबद्ध हैं। भूपेन्‍द्र जी का जन्‍मदिन 1 जनवरी को है। तो उन्‍हें जन्‍मदिन और नया साल दोनों बहुत बहुत मुबारक हों।
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मुंहबोली बिटिया राधा मार्च में अपने एक प्रोजेक्‍ट के सिलसिले में मैसूर से यहां बंगलौर में एक हफ्ते मेरे साथ रहकर गई। 13 नवम्‍बर को मेरा जन्‍म दिन होता है और 26 को उसका। तो 20 नवम्‍बर का दिन हमने साथ बिताया। साठ फुट ऊंची शिव प्रतिमा देखने गए। आजकल वह बंगलौर में ही है। हां, अब एचडीएफसी लिमिटेड में सीनियर ऑफिसर जो हो गई है।
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दिल्‍ली से आया मेरा दोस्‍त। क्रिसमस के ठीक पहले दिल्‍ली से नरेन्‍द्र मौर्य एक कार्यशाला के लिए बंगलौर चले आए थे। बंगलौर के केंट रेल्‍वे स्‍टेशन के पीछे एक मिशनरी संस्‍थान में वे ठहरे थे। तो बस हम जा मिले, बैठे, गप्‍प की।
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मुलाकातें, बातें कुछ और भी हुईं। पर आप भी जानते हैं न सबके बारे में तो नहीं बताया जा सकता। तो अलविदा 2011 और स्‍वागत है 2012 का। 
                             0 राजेश उत्‍साही

4 टिप्‍पणियां:

  1. घूमने घुमाने व मिलने जुलने का सिलसिला अगले वर्ष भी बना रहे, शुभकामनायें।

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  2. नव वर्ष में घूमने, नए स्थल देखने का सिलसिला बना रहे।
    आपको व परिवार में सभी को नव वर्ष की अनंत शुभकामनाएं।

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  3. Aap ko shukriya jo 2011 ko alvida kehte hue yeh sab darz kar diya.

    2012 mein aap ko aur aap ke parivar ko sehat ke saath sukh-shanti bharpur mile, isi kamna ke saath.

    Bhupendra

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