एक बार फिर उदयपुर जाना हुआ। 'खोजें और जानें' के
दूसरे अंक के संपादन के लिए।1 से 6 अक्टूबर तक वहां रहना था। सोचा इस बार अजित
गुप्ता जी से मुलाकात कर ही ली जाए। अपनी पिछली दो यात्राओं में समय की कमी के
कारण मैंने उनसे संपर्क नहीं किया था।
इस बार उदयपुर पहुंचते ही मैंने उन्हें एक मेल कर
दिया था।तुरंत ही उनका उत्तर भी आ गया कि मैं 5 अक्टूबर को दिल्ली जा रही हूं
उसके पहले आप जब चाहें तब मिलने आ सकते हैं,आपका स्वागत है। मैंने 3 अक्टूबर की
शाम उनसे मुलाकात करना तय किया।
विद्याभवन के अपने साथी पुष्पराज से मैंने अनुरोध
किया वे मुझे उनके आवास तक पहुंचा दें।उदयपुर में अजित जी का निवास अरावली अस्पताल
के पास है।पुष्पराज अपनी मोटर साइकिल पर मुझे उनके आवास पर छोड़कर चले आए।
अरावली अस्पताल से कुछ पचास कदम आगे सामने की तरफ
अजित का आवास था। आवास में डॉ.चन्द्रकुमार गुप्ता का बोर्ड लगा हुआ था। अजित जी ने
भी यही बताया था।
चहारदिवारी का गेट खोलकर मैं अंदर पहुंचा।घंटी बजाई।दरवाजा एक भ्रद पुरुष ने खोला। नमस्कार करके मैंने कहा,'अजित जी से
मिलना है।' उन्होंने नमस्कार का उत्तर दिया और कहा,'आइए,अजित जी जरा व्यस्त
हैं।'मैं समझ गया कि वे चन्द्र कुमार जी हैं अजित जी के पति।
जब तक बैठने का उपक्रम करता तब तक अजित जी सामने
थीं। वे जैसी तस्वीर में दिखती हैं,वैसी ही हैं।उनकी सौम्य मुस्कान और चश्मे के पीछे से झांकती उनकी आंखें उनके
चेहरे से नजर हटने ही नहीं दे रही थीं।ब्लाग पर जितना परिचय है उसमें कुछ और इजाफा
करते हुए मैंने अपना परिचय दिया।उदयपुर आने का अपना मंतव्य बताया।
अजित जी आयुर्वेद चिकित्सक हैं।वे आयुर्वेद
महाविद्यालय,उदयपुर में चिकित्सा एवं अध्यापन कार्य करती रही हैं।1997 में स्वैच्छिक
सेवानिवृति के बाद से पूरा समय लेखन एवं सामाजिक कार्यों में लगा रही हैं।लगभग
तीन साल वे राजस्थान साहित्य अकादमी की अध्यक्ष एवं अकादमी की पत्रिका'मधुमति'की संपादक रही हैं।
यह तस्वीर चन्द्रकुमार जी ने ली है। उस दिन जाने कैमरे को क्या हुआ था
।
एक भी तस्वीर ठीक से नहीं आई। यही सबसे बेहतर रही।
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फिर जैसा कि होता है जब दो ब्लागर मिलते हैं तो ब्लाग
की बातें होती ही हैं। सो हमारे बीच भी हुईं।इन दिनों ब्लाग में चल रही गुटबाजी
को लेकर वे भी खासी दुखी नजर आईं।चर्चा करते हुए यह महसूस हुआ कि ब्लाग को लेकर
उनके और मेरे विचार लगभग एक जैसे ही हैं।वे भी विवादित ब्लागों पर जाना पसंद
नहीं करती हैं।उन्हें भी लगता है कि ब्लाग अभिव्यक्ति का माध्यम हैं और वहां
सबको अपनी बात कहने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।चाहे आप सहमत हों या न हों।एक और समानता दिखी।वे भी सीधे हिन्दी की-बोर्ड से ही टाइप करती हैं और मैं भी।पर वे अब भी डेस्कटॉप को ही पसंद करती हैं,हालांकि लैपटॉप की आदत डाल रही हैं।
अजित जी बीच-बीच में उठकर आथित्य सत्कार की
औपचारिकताओं में भी लगी रहीं। चन्द्रकुमार जी भी वहां मौजूद थे,पर वे हमारी बातचीत के
केवल श्रोता थे, बातचीत में हिस्सा नहीं ले रहे थे। मैंने उनसे पूछा, 'आप भी...।' वे बोले, 'नहीं जी बस अपन तो पाठक और श्रोता ही हैं।बाकी अपना यह क्लीनिक है
रोगियों की सेवा के लिए।' वे एलोपैथी चिकित्सक हैं। घर के एक हिस्से में छोटा-सा क्लीनिक है।
मैं अपना कविता संग्रह' वह जो शेष है' अजित जी के
लिए ले गया था। मैंने उन्हें सादर भेंट किया।उन्होंने भी अपना सांस्कृतिक
निबंध संग्रह 'बौर आए: बौराऊँ नहीं'भेंट किया।इसमें मधुमति में लिखे गए उनके 30
संपादकीय संग्रहित हैं।इन निबंधों में संस्कृति,साहित्य और समाज की चर्चा है।
इनमें देश की बात है तो परदेश की भी।
'साहित्यकार और समाज के मंच'निबंध में वे लिखती
हैं,'वर्तमान में साहित्यकार,लेखक,बुद्धिजीवी,चिंतक,मनीषी की समाज में क्या
स्थिति है?इस पर हमें गम्भीरता से चिंतन करना चाहिए। वास्तविकता में वे केवल स्वयं
के मंचों पर ही सम्मानित होते हैं,समाज के शेष वर्ग उन्हें केवल अपने
बुद्धिविलास या शोभा के लिए उपयोग करता है या फिर उनकी रचनाओं से अपने आपको समाज
के सम्मुख बुद्धिशाली प्रकट करता है।साहित्यकार का समाज में कोई स्थान नहीं,
उसका स्थान तभी तक है जब तक राजनेता या धन-कुबेर उस मंच पर या उस घर में नहीं
होता। उनके आने के बाद आप कब उनके मंचों और घरों से बेइज्जत कर दिए जाएं या फेंक
दिए जाएं, इसकी खबर आपको नहीं लगती।'उनका हर निबंध एक नई दृष्टि देता है।
पिछले कुछ दिनों से वे विवेकानंद को पढ़ रही थीं। और
उनके ब्लाग'अजित गुप्ता का कोना' में उन पर लिख भी रही थीं। सामने मेज पर नरेन्द्र
कोहली का उपन्यास'तोड़ो कारा तोड़ो'भी रखा हुआ था। जो विवेकानंद के जीवन पर ही
आधारित है।
यद्यपि हमारी यह मुलाकात लगभग एक घंटे की संक्षिप्त
मुलाकात थी, लेकिन बहुत सारगर्भित रही।अजित जी तथा चन्द्रकुमार जी को अपने किसी परिचित से मिलने अस्पताल जाना था। वे उसी ओर जा रहे थे, जहां मेरा ठिकाना था। सो
मैंने उनकी कार में ही शरण ली। अजित जी ने कहा कि अगली बार आएं तो समय निकालकर आएं
ताकि हम केवल दिमागी भोजन ही नहीं,वास्तविक भोजन भी साथ कर सकें।
मैं भी अगली उदयपुर यात्रा का इंतजार कर रहा
हूं ताकि एक बार फिर अजित जी से मुलाकात हो सके। 0 राजेश उत्साही
अजित जी को पढ़ती रही हूँ किन्तु उनके बारे में इतनी जानकारी नहीं थी , आप के ब्लॉग से उन्हें और जानने का मौका मिला ।
जवाब देंहटाएंअजित जी से आपकी मुलाकात पढ़ कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंआपकी अजित जी से मुलाकात के विषय में पढ़कर बहुत अच्छा लगा क्योंकि अगर हम इस तरह से एक दूसरे से मिल लेते हैं तो उनके बारे में और समझने का मौका मिल जाता है। उनके बारे में बहुत कुछ तो पढ़ कर ही पता लगा है अब आपकी मुलाकात ने बता दिया
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिला अजीत गुप्ताजी के बारे में...
जवाब देंहटाएंराजेशजी आपने मुलाकात का वर्णन यहां प्रस्तुत किया है उसमें कुछ त्रुटि रह गयी है, उसे ठीक कर लेंगे तो मेरे पतिदेव पर कृपा हो जाएगी। उनका नाम डॉ चन्द्रकुमार गुप्ता है और वे ऐलोपेथी के डॉक्टर है। अपने निवास पर ही उनका क्लिनिक है। अभी जोधपुर के लिए निकल रही हूँ, शेष दो दिन बाद।
जवाब देंहटाएंअजित जी इस गलती के लिए आपसे और डॉक्टर साहब से क्षमा चाहता हूं। नाम और काम दोनों ही मैंने ठीक कर लिए हैं।
हटाएंराजेश जी, आपकी पोस्ट पढ़ने के तुरन्त बाद मुझे जोधपुर के लिए निकलना था, बस रात को ही लौटे हैं। आपका आभार की आपने इतनी अच्छी पोस्ट लिखी और मेरी पुस्तक की उन पंक्तियों का उल्लेख किया जो आज हमारी वास्तविकता है। फोटो अच्छा आया है।
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