अगस्त,2013 में तीन बच्चों से
मुलाकात हुई। तीनों एक से बढ़कर एक। अमूमन बच्चे हमारी शक्ल देखकर ही घबरा जाते हैं।
पर ये तीनों बिलकुल नहीं घबराए। हमें भी संतोष हुआ कि कोई तो है जो हम से नहीं डरता। वैसे बड़े हों या छोटे एक बार पटरी बैठ गई, तो सामने वाले को भी अपने
से बात करने में मजा आता है और अपने को भी। यकीन न हो तो आजमाकर देख लीजिए। चलिए
फिलहाल इन तीन तिलंगों से मिलते हैं।
ये हैं जनाब मोहम्मद इकान। विद्याभवन सोसायटी,उदयपुर के झाला गेस्टहाऊस में था मैं। ईद का दिन था, सो वहीं 'खोजें और जानें' के
सम्पादन के काम में मशरूफ था। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई और विद्याभवन की साथी
संगम इकान के साथ नमूदर हुईं, ईद मुबारक कहती हुईं।
इकान साहेब, अपने कुरते पाजामे में
जम रहे थे। जमना शायद उनकी फितरत में था,
इसलिए लैपटॉप देखते ही
पास की कुर्सी पर जम गए। उनका पूरा नाम उन्होंने ही बताया। शुरू हो गई बातचीत। ये क्या है, वो क्या है। मैंने उन पर
काबू पाने के लिए लैपटॉप में अपना फोटो संग्रह दिखाना शुरू किया।
बंगलौर के बनरगट्टा नेशनल पार्क और मैसूर चिडि़याघर के बहुत से जानवरों की तस्वीरें
उसमें हैं। लगभग तीन-चार साल के इकान सब जानवरों के नाम जानते थे। हाथी,शेर,बिल्ली,घोड़ा,बन्दर,जिराफ यहां तक कि जेब्रा भी।
पर वे दो तस्वीरें नहीं पहचान सके। एक थी भालू महाशय की और दूसरी 'मेरी'।
मजे की बात यह कि तस्वीरें
मेरे लैपटॉप में थीं, पर उनकी कहानियां इकान के पास। जैसे ही कोई तस्वीर सामने
आती वे धाराप्रवाह शुरू हो जाते। जैसे कि हमारे घर पर भी एक शेर है...एक दिन शेर
की बिल्ली से लड़ाई हो गई...या कि हमारे अंकल के पास तो बहुत बड़ी बंदूक है या कि
एक दिन क्या हुआ..हम बाइक पर जा रहे थे...। मुझे समझ आ गया था कि ये जनाब बड़े होकर
अच्छे कथावाचक बनेगें ।
बहुत देर उनसे बातें हुईं। पहले उन्होंने चाय पी, फिर वे कटोरी में चिप्स लिए खाते रहे और हम यूं ही चबाते रहे। जब जाने लगे तो संगम ने लगभग दो मिनट के अंतराल के बाद तीन बार 'बाय' कहा। दो बार तो उन्होंने जवाब दिया, पर फिर तीसरी बार नाराज हो गए...बोले कह तो दिया एक बार 'बाय'। हमने भी धीरे से कहा...ईद मुबारक हो इकान। आज फिर कहते हैं .... ईद मुबारक।
ये जनाब हैं उदयपुर के शौर्यप्रताप
सिंह। बहुत हैरान-परेशान रहते हैं और उनसे ज्यादा उनकी मम्मी जया राठौड़ उनसे
परेशान रहती हैं। अभी प्री स्कूल में हैं। उनके इतने सवाल होते हैं कि मम्मी के
सारे जवाब खत्म हो जाते हैं। केवल सवाल ही नही सुझाव भी होते हैं, जिन पर अमल करने का दबाव
भी होता है, वरना भूख हड़ताल शुरू हो जाती है। अब कोई बताए कि इस सवाल
का क्या जवाब दिया जाए कि, 'आखिर रात सोकर ही क्यों काटनी या गुजारनी होती है।'
जिस युग के वे हैं, उस युग के तौर तरीकों का
पालन करते हुए कम्प्यूटर पर गेम्स खेलना, पेटिंग करना और कार्टून
देखना उनका शगल नहीं, बल्कि कर्तव्य है। एक दिन वे अपने कर्तव्य पालन में लगे थे।
जया को कुछ काम करना था, पर शौर्य जी का काम पूरा नहीं हुआ था, सो वे देने के लिए तैयार
नहीं थे। अंतत: ऐसी स्थिति बनी कि उन्होंने दो चपत लगाकर अपना लैपटॉप वापस लेना पड़ा।
शौर्य जी भी कम नहीं। उन्होंने
कहीं से एक पुरानी फाइल की जुगाड़ की। दादी (दादी के लाड़ले जो ठहरे) के एक पेटीकोट का नाड़ा निकाला, उसका एक सिरा फाइल में
बांधा और दूसरा बिजली के स्विच बोर्ड के
पास ले जाकर उसमें अटका दिया। फिर अपनी एक छोटी हॉटव्हील कार ढूंढी उसमें भी एक धागा बांधा
और उसके दूसरे सिरे को फाइल में बांधा। यह उनका माऊस था। फाइल कवर का एक हिस्सा उनके
लैपटॉप का कीबोर्ड था और दूसरा स्क्रीन। अब कल्पना की तो कोई कमी ही नहीं है उनके पास। सो
वे घंटों अपने उस लैपटॉप पर जो चाह रहे थे, वो करते रहे।
एक बार स्कूल की कॉपी में उन्होंने लिखने की बजाय, कुछ गूदा गादी कर दी। अब उन्होंने तो चित्र बनाया था, टीचर को वह गूदा गादी नजर आई। डायरी में शिकायत दर्ज हो गई। घर में मम्मी ने पूछा, तो जवाब मिला,' हां गलती हो गई। अब ये बताइए कि करना क्या है।' और फिर अगले दिन एक कागज पर सॉरी लिखकर ले गए।
पर आप इस धोखे में न रहें कि हर बार सॉरी बुलवा सकते हैं उनसे। टीचर-पैरेंटस मीटिंग में उनके सामने ही उनकी टीचर मम्मी से शिकायत कर रही थीं, कि इन्हें कुछ नहीं आता। ये किसी सवाल का जवाब नहीं देते हैं। जया यह सुनकर आश्चर्यचकित थीं। क्योंकि शौर्य घर में तो सारे सवालों का जवाब देता है, और वह सब जानता है, जिसके बारे में टीचर कह रही हैं। जया ने वहीं शौर्य से पूछा, कि ये क्या कह रही हैं। वे बोले, 'अगर टीचर डांटकर पूछेंगी, तो मैं कुछ भी नहीं बताऊंगा।'
एक दिन उनके स्कूल में छुट्टी थी, सो मम्मी के साथ ऑफिस पहुंच गए। हम उनकी शौर्य गाथाएं सुनते ही रहते हैं, फिर भला वे हमारे कैमरे की जद में आए बिना कैसे बचते।
एक बार स्कूल की कॉपी में उन्होंने लिखने की बजाय, कुछ गूदा गादी कर दी। अब उन्होंने तो चित्र बनाया था, टीचर को वह गूदा गादी नजर आई। डायरी में शिकायत दर्ज हो गई। घर में मम्मी ने पूछा, तो जवाब मिला,' हां गलती हो गई। अब ये बताइए कि करना क्या है।' और फिर अगले दिन एक कागज पर सॉरी लिखकर ले गए।
पर आप इस धोखे में न रहें कि हर बार सॉरी बुलवा सकते हैं उनसे। टीचर-पैरेंटस मीटिंग में उनके सामने ही उनकी टीचर मम्मी से शिकायत कर रही थीं, कि इन्हें कुछ नहीं आता। ये किसी सवाल का जवाब नहीं देते हैं। जया यह सुनकर आश्चर्यचकित थीं। क्योंकि शौर्य घर में तो सारे सवालों का जवाब देता है, और वह सब जानता है, जिसके बारे में टीचर कह रही हैं। जया ने वहीं शौर्य से पूछा, कि ये क्या कह रही हैं। वे बोले, 'अगर टीचर डांटकर पूछेंगी, तो मैं कुछ भी नहीं बताऊंगा।'
एक दिन उनके स्कूल में छुट्टी थी, सो मम्मी के साथ ऑफिस पहुंच गए। हम उनकी शौर्य गाथाएं सुनते ही रहते हैं, फिर भला वे हमारे कैमरे की जद में आए बिना कैसे बचते।
टेसू, हां यही नाम है इनका। पर
ये ‘मेरा टेसू यहीं अड़ा’ वाले टेसू नहीं हैं। ये जंगल में दहकने वाले टेसू यानी कि पलाश
हैं। इनका वास्तविक नाम पलाश ही है। पर हां, इनकी सारी गतिविधियां ‘मेरा टेसू यहीं अड़ा’ वाली ही हैं। भोपाल में अपने नाना यानी कि मदन सोनी जी के घर को इन्होंने दहका रखा है। लगभग डेढ़ साल के टेसू के
पास खिलौनों की कमी नहीं है। पर एक खांटी बच्चे की तरह उन्हें भी खिलौने छोड़कर घर
की बाकी सब चीजों से खेलने में मजा आता है। कुर्सी से लेकर वांशिग मशीन तक उनकी पहुंच
से बाहर नहीं है। पूरे समय उनके नाना, नानी रैफरी और लाइनमेन की तरह फाउल-फाउल कहते सर्तक करते
रहते हैं। लाल,पीले कार्ड नुमा आंखों का उन पर कोई असर नहीं होता। वास्तव में टेसू के
रंग की भांति उन्होंने सबको अपने रंग में रंगा हुआ है। किसी भी चीज को छुपाकर वे दोनों
हाथ हिलाते हुए कहते हैं यहां-वहां। यह उनका प्रिय आप्त वचन है। हर मम्मी की तरह
उनकी मम्मी पारुल सोनी भी फिलहाल इस बात से हैरान-परेशान हैं कि जब वे घर में होती
हैं, तो महाशय पूरे समय उनकी गोदी में ही लदे रहना चाहते हैं।
बहरहाल हमने इनको भी अपने
कैमरे में कैद करने की कोशिश की।
0 राजेश उत्साही
इन बच्चों से मिलने का सबब ?
जवाब देंहटाएंबस काजल जी यूं यात्रा में मिल गए ।
हटाएंबहुत अच्छी व्याख्या लगी. - Parul
जवाब देंहटाएंवाह, बाल चरित्रों का सुखद वर्णन..
जवाब देंहटाएंachchha he utsahi ji
जवाब देंहटाएं