मंगलवार, 23 नवंबर 2010

'मेरा भी कुछ हक बनता है।'

                                                                                          फोटो: राजेश उत्‍साही
बंगलौर में हर रोज शाम को दफ्तर से घर  रोज पैदल जाना होता है। रास्‍ते में एक दर्जी का घर नजर आता है। यह गाय लगभग हर रोज  उसके घर के सामने मुझे इसी तरह खड़ी मिलती है। जैसे कह रही हो, 'मेरा भी कुछ हक बनता है।'
आप क्‍या कहते हैं ?

17 टिप्‍पणियां:

  1. जी हा ये दृश्य आप के भारत के अनेको घर में मिल जायेगा | मेरे घर में भी माँ एक गाय को अक्सर बचा खुचा खाना खिला देती थी तो धीरे धीरे उसका नियम बन गया और फिर वो हर रोज नियत समय पर दरवाजे पर आ कर खड़ी हो जाती थी और जब कुछ देर तक कोई नहीं आता तो अपने सिंग से दरवाजे को ठोकने लगती थी | हमें ऐसा लगता था की जैसे कोई व्यक्ति दरवाजे को नॉक कर रहा हो | ऐसे ही बहुत सी जगहों पर कुत्ते बिल्ली बंदर आदि को भी लोग हमेसा खाना देते है और वो भी हर रोज दरवाजे पर ऐसे आ कर खड़े हो जाते थे जैसे मेरा भी कुछ हक़ बनाता है |

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  2. ये लीजिये मैंने तो पोस्ट से लम्बी टिप्पणी दे दी |

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  3. आखिर फैशन का मन तो हर किसी को होता होगा

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  4. मूक जुबान कोई कोई ही पढ़ सकता है ...

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  5. क्यों नहीं भई पूरा पूरा हक बनता है
    dabirnews.blogspot.com

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  6. हक बनता होगा तभी तो खडी होती है वहाँ।

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  7. मानते हैं जी ...... पूरा हक लगता है.

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  8. वो घर उसी का है, तभी तो घर में जा रही है। हा हा हा हा।

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  9. प्यार की जुबान जानवर बेहतर समझते हैं...दर्जी दयालू होगा।

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  10. हम से बेहतर समझते हैं यह...अपना हक ...शुक्रिया

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  11. आपने तो जानवर के मन को शब्द दे दिए...
    :)

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