एक बार फिर उदयपुर जाना हुआ। ‘खोजें और जानें’
पत्रिका के अगले अंक के संपादन के सिलसिले में।
पर्यावरण दिवस यानी 5 जून को मैं उदयपुर में ही था।
विद्याभवन उदयपुर की जानी मानी शैक्षिक संस्था है। पूरे उदयपुर में उसके अपने
शैक्षिक संस्थान हैं और अन्य केंद्र हैं। भीलवाड़ा,नयाबीड़ की पहाडि़यों के बीच
उनका एक प्रकृति साधना केंद्र भी है। इस केंद्र में बच्चों के कैम्प आयोजित होते
हैं, उन्हें ट्रेंकिग करवाई जाती है। लगभग 60 साल पहले विद्याभवन के कर्ताधर्ताओं
ने इस जगह को खरीदा था और फिर इसे विद्याभवन को दान कर दिया। वहां एक छोटे से
कार्यक्रम का आयोजन था। मुझे भी इस कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला।
अनायास ही वहां मुझे मंच पर आमंत्रित कर लिया गया।
मंच पर पहले से विद्याभवन के संस्थापक श्री मोहनसिंह मेहता के पुत्र श्री जगत
मेहता (नब्बे वर्षीय मेहता जी व्हील चेयर पर आए थे) तथा अध्यक्ष रियाज़ तहसीन उपस्थित थे। साथ ही स्थानीय विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्रवक्ता भी। विद्याभवन
के भागचंद कुमावत जी मुझे वहां ले गए थे। आयोजकों को मेरे उपस्थित होने की सूचना उन्होंने
ही दी थी। श्रोताओं में बच्चों को मिलाकर लगभग सौ जने मौजूद थे।
बाकी लोगों ने परंपरा के अनुसार वही सब कहा जो इस
अवसर पर विद्वान कहते हैं। मुझे भी कुछ कहने का मौका मिला। मैंने दो छोटी बातें
कहीं। एक यह कि आज पर्यावरण की एक बड़ी समस्या है पॉलीथीन का बढ़ता प्रयोग। इसे कम
करने के उपाय हो रहे हैं। लेकिन जब तक हम शुरूआत अपने स्तर से नहीं करेंगे तब तक
समस्या से निपटना मुश्किल है।
मैंने कहा,अगर आप यह करें कि अपने साथ हमेशा एक कपड़े का थैला रखें ताकि बाजार से सामान लेते समय आपके साथ चले आने वाले प्लास्टिक बैग आपके साथ न आएं। मैं तो यही करता हूं। हां,इस आदर्श में भी न पड़ें कि हर बार आप ऐसा कर ही पाएंगे। दस में से आठ बार भी आप ऐसा करते हैं तो वह एक सकारात्मक पहल होगी। और इसके लिए आपको कुछ और करने की जरूरत नहीं है। बिना कहे ही आपको देखकर अन्य लोग भी इस पर अमल करेंगे।
दूसरी बात, जहां तक संभव हो कागज का उपयोग कम करें। और जिस कागज का उपयोग कर रहे हों तो फिर उसका पूरा उपयोग करें। क्योंकि कागज बनाने में वृक्षों का ही उपयोग होता है। और यह बात बच्चों को खासतौर पर ध्यान रखनी चाहिए। क्योंकि वे अपनी पढ़ाई के लिए कॉपियों का बहुतायत मात्रा में उपयोग करते हैं। तो जब तक उसका एक एक पन्ना भर न जाए,तब तक उसे कबाड़ में बेचें।
मैंने कहा,अगर आप यह करें कि अपने साथ हमेशा एक कपड़े का थैला रखें ताकि बाजार से सामान लेते समय आपके साथ चले आने वाले प्लास्टिक बैग आपके साथ न आएं। मैं तो यही करता हूं। हां,इस आदर्श में भी न पड़ें कि हर बार आप ऐसा कर ही पाएंगे। दस में से आठ बार भी आप ऐसा करते हैं तो वह एक सकारात्मक पहल होगी। और इसके लिए आपको कुछ और करने की जरूरत नहीं है। बिना कहे ही आपको देखकर अन्य लोग भी इस पर अमल करेंगे।
दूसरी बात, जहां तक संभव हो कागज का उपयोग कम करें। और जिस कागज का उपयोग कर रहे हों तो फिर उसका पूरा उपयोग करें। क्योंकि कागज बनाने में वृक्षों का ही उपयोग होता है। और यह बात बच्चों को खासतौर पर ध्यान रखनी चाहिए। क्योंकि वे अपनी पढ़ाई के लिए कॉपियों का बहुतायत मात्रा में उपयोग करते हैं। तो जब तक उसका एक एक पन्ना भर न जाए,तब तक उसे कबाड़ में बेचें।
मेरी ये दो बातें लोगों को पसंद आईं ,इसका आभास मुझे
तब हुआ जब कार्यक्रम खत्म होने पर जगत मेहता जी ने मुझे पास बुलाया और कहा वे मुझसे बहुत प्रभावित हैं। मैं क्या कहता,बस अभिभूत था।
मुख्य अतिथियों से वृक्षारोपण करवाया गया। मुझे भी
यह सम्मान हासिल हुआ। जिंदगी में सार्वजनिक रूप से पहली बार अपन ने एक पौधा रोपा-नीम का पौधा। कुछ
संयोग भी ऐसा कि नीम ही मुझे बहुत प्रिय रहा है।
0 राजेश उत्साही
0 राजेश उत्साही
राजेश भाई आपकी दोनों बातें गाँठ बाँध लेने योग्य हैं...इस सोच के लिए बधाई. उदैपुर यात्रा की रिपोर्ट अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंनीरज
..पर समस्या यही है कि वे केवल गांठ में बंधी रह जाती हैं,अमल में कम आती हैं।
हटाएंसच है हमारी धरती पोलीथीन के नीचे दब न जाए.......
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट....
बस एक शिकायत.....जिज्ञासा कह लीजिए.....
जीवन में पहला पौधा रोपा????
अब कसर पूरी कीजिये...१०-१५ लगाइए.....फल फूलों वाले...
गुस्ताखी माफ
:-)
सादर
शुक्रिया सुझाव के लिए। वास्तव में सार्वजनिक रूप से पौधा रोपने का यह पहला मौका था। मैंने पोस्ट में भी ठीक कर लिया है। वैसे जहां 10-15 पौधे लगाकर उन्हें फलता फूलता देख सकें,ऐसी कुछ गज जमीन अभी तक प्राप्त नहीं कर पाएं हैं।
हटाएंऔर समस्या जितनी पौलीथीन के धरती पर होने से हैं उससे कहीं ज्यादा उसके धरती के अंदर दबने से।
हटाएंआपके दोनों सुझावों पर यथासंभव अमल कर रहा हूँ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया। आप जैसे जागरूक नागरिक से अपेक्षा भी यही है।
हटाएंआपने अच्छी बातें कहीं आशा है अम इनहें अपने जीवन में भी अपना पाएं
जवाब देंहटाएंतय कर लेंगे तो जरूर ही अपना पाएंगे।
हटाएंबहुत ही अच्छे सुझाव हैं। अमल में लाने के लिये कोशिश करुंगी।
जवाब देंहटाएंअमल में लाएंगी तो आपको तो खुशी मिलेगी ही, मुझे भी मिलेगी।
हटाएंआपके दोनों सुझाव अनुकरणीय हैं। बंगलौर के दुकानदारों ने अच्छा चलन पैदा किया है--या तो अपना थैला घर से लेकर चलो, न लाए हों तो पैकिंग-बैग समूल्य मिलेगा। पॉलिथीन की थैलियों का प्रयोग दिल्ली के बाज़ारों में भी काफी कम हो गया है बावज़ूद इसके यह प्रयोग में आ ही रही है। दूध मदर डेयरी का हो या अमूल या किसी अन्य कंपनी का, पॉलिथीन में ही पैक आता है, इसके अलावा और भी पता नहीं क्या-क्या। हम घर से तो कपड़े का थैला लेजा सकते हैं, 'बाज़ार' की पैकिंग से कैसे बचेंगे? रही कागज़ के कम प्रयोग की बात, सो उसका प्रयोग भी काफी हद तक कम्प्यूटर और मोबाइल ने कम कर ही दिया है।
जवाब देंहटाएंअसल में तो यह भारत सरकार ने एक आदेश निकाला है जिसमें पोलीथीन बैग की कीमत वसूलना अनिवार्य है। बंगलौर में यह नियम बड़े सुपरबाजारों में कड़ाई से लागू है।
हटाएंदूध आदि के पैकेट कबाड़ में बिक जाता है और फिर से रिसायकिल हो जाता है। लेकिन सब्जी तथा अन्य छोटे मोटे सामान में जो पौलीथीन बैग आते हैं वह तो बिकता नहीं है।
वही सबसे अधिक समस्या पैदा करता है।
बैग के पैसे तो अब हर जगह ही लिए जाते है किन्तु कुछ लोग अब भी बैग ले कर नहीं आते है कभी समान इतना ज्यादा होता है तो कभी उन्हें लगता है की घर से बैग लाना गवार की निशानी है क्या बैग के पैसे हम नहीं दे सकते है वो अभी तक इस बार तो पर्यावरण से जोड़ कर नहीं देखते है | हम भी घर से बैग ले कर जाते है किन्तु कपडे का नहीं पलास्टिक का ही जो हमरे पास पहले से ही पड़ा है क्योकि समान इतना ज्यादा होता है की कभी कभी किसी कपडे के बाग में लाना संभव नहीं है फिर भी सोच रख है की जिस दिन घर के सारे प्लास्टिक के बैग ख़त्म हो जायेंगे उस दिन कपडे का बैग ही प्रयोग करेंगे तब तक उन प्लास्टिको का भरपूर प्रयोग कर ले | मुंबई जैसे छोटे घर में भी हमने भी २५-३० पौधे लगा कर रखे है |
जवाब देंहटाएंपॉलीथीन अगर आ गया है तो उसका जितना उपयोग कर सकें करें। लेकिन एक समय के बाद वह भी नुकसान पहुंचाने लगता है। जैसे पानी की बोतल अधिक से अधिक डेढ़ साल तक ही उपयोग की जानी चाहिए। उसके बाद उसका प्लास्टिक पानी में घुलने लगता है।
हटाएंसच में बहुत बड़ी बात आपने कही थी...पोलिथिन का इस्तेमाल करने से तो मैं भी बचता हूँ, लेकिन फिर भी बहुत बार इस्तेमाल करना पड़ ही जाता है...
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