गुरुवार, 10 मार्च 2011

एक से बढ़कर एक

मुझे लगता है यह किसी भोपाली के दिमाग की उपज होगी। एक जमाने में वहां की अरेरा कालोनी में ऐसे पते पूछने वालों की लाइन लगी रहती थी। क्‍योंकि कालोनी में घरों के नम्‍बर इतने उल्‍टे-सीधे थे कि बस कहने को जी चाहता था,'ढूंढते ही रह जाओगे।'
पता नहीं यह नोटिस कहां लगा है। पर मेरे ख्‍याल से इसे हर समझदार ब्‍लागर को अपने ब्‍लाग में सबसे ऊपर लगाना चाहिए।क्‍योंकि इस दुनिया में ज्ञान बांटने वालों की भरमार हो गई है। 
उल्‍टी तो हम नहीं करेंगे। पर सीधी करने पर कितना इनाम मिलेगा,यह पता नहीं चलता इससे। 


मित्रो मुझे अफसोस है कि ये फोटो मेरे कैमरे से नहीं खींचे गए हैं। ये मुझे एक ईमेल के जरिए प्राप्‍त हुए। पर जिसने या जिन्‍होंने भी ये फोटो लिए हैं, उनकी नजर को दाद देनी पड़े़गी। फोटो उन्‍हीं फोटोग्राफरों के सौजन्‍य से प्रस्‍तुत हैं। हां इन फोटो के नीचे पंच लाइन मैंने लिखी हैं,उसके लिए आप मुझे दाद (खाज नहीं) दे सकते हैं। 
                                                                                                                    0 राजेश उत्‍साही
* समय मिले तो गुल्‍लक में भी जाएं  और मिलें सुधा भार्गव से। 
* पढ़ें  स्‍त्री पर दो कविताएं गुलमोहर में।

12 टिप्‍पणियां:

  1. ye ulti vaalaa postar main pahale bhi kahi dekh chuka hun.....badhiya post.

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  2. बहुत बढ़िया .....

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    १९ तारीख को चाँद आ रहा है मिलने ...

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  3. शानदार पंचलाईन के लिये बधाई । मगर इधर उजंजैन में तो कई लोग पेड के नीचे, तो कभी ओटले पर ताक में रहते हैं कोई पता पूछे तो खिल जाते हैं और न मालूम हो तो भी बताए बिना नहीं मानते । और यदि मालूम हौ तो क्या कहने ! पहुंचा कर ही मानेंगें ।

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  4. जिस होटल में उल्टी के लिये साइन लगाना पडे वहाँ का भोजन कैसा होगा?

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  5. बहुत बढ़िया .....आपको होली की शुभकामनाएँ

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  6. तीनों संकेतक एक से बढ़ कर एक हैं। आपकी टिप्पणियों ने उनमें शक्ति भर दी है। सराहनीय लेखन के लिए बधाई। मैं राजस्थान के पर्यटन पर जाना चाहता हूँ। आपकी पिछली पोस्ट मेरे लिए सहायक सिद्ध होंगी।
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    महकती रहे यह सतत काव्य-धारा।
    जिसे आपने कागजों पर उतारा॥
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    होली मुबारक़ हो। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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